प्रधानमंत्री मोदी की पाठशाला: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने "परीक्षा पे चर्चा" कार्यक्रम के तहत वर्चुअल प्लेटफार्म पर शेयर किए विचार

पीएम मोदी ने कहा कि आप जब डर की बात करते हैं तो मुझे भी डर लग जाता है। पहली बार परीक्षा देने जा रहे हैं क्या? मार्च-अप्रैल में परीक्षा आ रही है। यह तो पहले से पता होता है। जो अचानक नहीं आया है, वह आसमान नहीं टूट पड़ा है। आपको डर परीक्षा का नहीं है।

नई दिल्ली।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'परीक्षा पे चर्चा’ कार्यक्रम के तहत बुधवार को बच्चों से बातचीत की। पीएम मोदी ने कहा कि उम्मीद है कि परीक्षा की तैयारी अच्छी चल रही होगी। यह पहला वर्चुअली प्रोग्राम है। हम डेढ़ साल से कोरोना के साथ जी रहे हैं। मुझे आप लोगों से मिलने का लोभ छोड़ना पड़ रहा है। नए फॉर्मेट में आपके बीच आना पड़ रहा है। आपसे न मिलना यह मेरे लिए बहुत बड़ा लॉस है। फिर भी परीक्षा तो है ही। अच्छा है कि हम इस पर चर्चा करेंगे। इस दौरान पल्लवी (आंध्रप्रदेश) और अर्पण पांडे (मलेशिया) 12वीं स्टूडेंट्स के सवाल के जवाब में पीएम मोदी ने कहा कि आप जब डर की बात करते हैं तो मुझे भी डर लग जाता है। पहली बार परीक्षा देने जा रहे हैं क्या? मार्च-अप्रैल में परीक्षा आ रही है। यह तो पहले से पता होता है। जो अचानक नहीं आया है, वह आसमान नहीं टूट पड़ा है। आपको डर परीक्षा का नहीं है।

आपके आसपास माहौल बना दिया गया है कि परीक्षा ही सबकुछ है। इसके लिए पूरा सामाजिक वातावरण, माता-पिता, रिश्तेदार ऐसा माहौल बना देते हैं कि जैसे बड़े संकट से आपको गुजरना है। मैं सभी से कहना चाहता हूं कि यह सबसे बड़ी गलती है। हम जरूरत से ज्यादा सोचने लग जाते हैं। इसलिए मैं समझता हूं कि यह जिंदगी का आखिरी मुकाम नहीं है। बहुत पड़ाव आते हैं। यह छोटा सा पड़ाव है। हमें दबाव नहीं बढ़ाना है। पहले क्या होता था, मां-बाप बच्चों के साथ ज्यादा इनवॉल्व रहते थे। आज ज्यादातर करियर, पढ़ाई, सिलेबस में इनवॉल्व है। मैं इसे इन्वॉल्वमेंट नहीं मानता। इससे उन्हें बच्चों की क्षमता का पता नहीं चल पाता। वे इतने व्यस्त हैं कि उनके पास बच्चों के लिए समय ही नहीं है। ऐसे में बच्चों की क्षमता का पता लगाने के लिए उन्हें बच्चों का एग्जाम देखना पड़ता है। इसलिए उनका आंकलन भी रिजल्ट तक सीमित रह गया है। ऐसा नहीं है कि एग्जाम आखिरी मौका है। यह तो लंबी जिंदगी के लिए अपने को कसने का मौका है। समस्या तब होती है जब हम इसे ही जीवन का अंत मान लेते हैं। दरअसल एग्जाम जीवन का गढ़ने का अवसर है। उसे उसी रूप में लेना चाहिए। हमें अपने आपको को कसौटी पर कसने का मौका खोजते रहना चाहिए। ताकि हम और बेहतर कर सकें।

कठिन फैसलों पर पहले करें विचार


​​​​​​​टीचर्स हमें सिखाते हैं कि जो सरल है उसे पहले करें। एग्जाम में तो खास तौर से कहा जाता है। पढ़ाई को लेकर ये सलाह जरूरी नहीं है। पढ़ाई की बात हो तो कठिन को पहले अटेंड करें। इससे सरल तो और आसान हो जाएगा।मैं मुख्यमंत्री था, फिर प्रधानमंत्री बना। मैं क्या करता था, जो फैसले थोड़े कठिन होते थे। अफसर कठिन लेकर आते थे। मैंने अपना नियम बनाया है। कठिन फैसले पर पहले विचार करना है। रात में आसान फैसलों वाली चीजों के बारे में सोचता हूं। सुबह फिर कठिन से मुकाबला करने के लिए तैयार रहता हूं। सभी लोग हर विषय में पारंगत नहीं होते। किसी एक विषय पर उनकी पकड़ होती है। लता मंगेशकर को देखिए। उनकी महारात ज्योग्राफी में भले न हो, संगीत में उन्होंने जो किया है वह हर एक के लिए प्रेरणा का कारण बन गई हैं। अगर आपको कोई सब्जेक्ट कठिन लगता है तो यह कोई कमी नहीं है।

इससे भागिए मत। टीचर्स के लिए मेरी सलाह है कि टाइम मैनेजमेंट के संबंध में सिलेबस से बाहर जाकर उनके बात करें। उन्हें टोकने के बजाए उन्हें गाइड करें। टोकने का मन पर नेगेटिव प्रभाव पड़ता है। कुछ बातें क्लास में सार्वजनिक तौर पर कहें। किसी एक बच्चे को सिर पर हाथ रखकर कोई बात कहना बहुत काम आएगा। आपके जीवन में ऐसी कौन सी बातें थीं, जो बहुत कठिन लगती थी। आज आप उसके सरलता से कर पा रहे हैं। ऐसे कामों की लिस्ट बनाइए। इन्हें किसी कागज पर लिख लेंगे तो किसी से कठिन वाला सवाल नहीं पूछना पड़ेगा।