सिरोही नगर परिषद: चेयरमैन महेन्द्र मेवाड़ा से ऐसी क्या दोस्ती है कि एसडीएम ने आपराधिक प्रकरण ही नहीं बनाया, सरकार इन्हें हटा नहीं रही

यह तो साफ हो गया है ​कि सिरोही नगर परिषद में झूठा शपथ पत्र देकर चेयरमैन बने महेन्द्र मेवाड़ा एससी—एसटी के विरुद्ध अपराध में शरीक रहे हैं। परन्तु चुनाव में उस झूठे शपथ पत्र पर चुनाव लड़ाने वाले रिटर्निंग अधिकारी ने एक परिवाद देकर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली है। यही नहीं राज्य सरकार इन्हें हटाने की दिशा में कोई कदम नही

चेयरमैन महेन्द्र मेवाड़ा से ऐसी क्या दोस्ती है कि एसडीएम ने आपराधिक प्रकरण ही नहीं बनाया, सरकार इन्हें हटा नहीं रही

सिरोही | यह तो साफ हो गया है ​कि सिरोही नगर परिषद में झूठा शपथ पत्र देकर चेयरमैन बने महेन्द्र मेवाड़ा एससी—एसटी के विरुद्ध अपराध में शरीक रहे हैं। परन्तु चुनाव में उस झूठे शपथ पत्र पर चुनाव लड़ाने वाले रिटर्निंग अधिकारी ने एक परिवाद देकर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली है। यही नहीं राज्य सरकार इन्हें हटाने की दिशा में कोई कदम नहीं उठा रही। दलितों—आदिवासियों के पक्ष में विधानसभा में जिस शख्स की आवाज सिरोही से मुखर होती है, वह संयम लोढ़ा भी ऐसे व्यक्ति के खिलाफ मौन है, जिस पर एससी—एसटी एक्ट में चालान पेश हुआ है। आखिर सभापति महेन्द्र मेवाड़ा पर किसका वरदहस्त है और सरकार उसे ​हटा क्यों नहीं रही है? यह सवाल सिरोही की फिजाओं में खामोशी से तैर रहा है।


खामोशी से इसलिए कि सिरोही नगर परिषद में चेयरमैन की दौड़ में शामिल लोग भी शराब व्यवसाय से जुड़े रहे महेन्द्र मेवाड़ा के खिलाफ बोलने की हिम्मत नहीं कर रहे। वजह साफ है कि मेवाड़ा का संरक्षण करने वाले उसके आका सरकार में अपनी तगड़ी पकड़ रखते हैं। एसडीएम का भी समझ नहीं आ रहा जब उन्होंने झूठे शपथ पत्र पर चुनाव लड़ने की बात स्वीकार ली है तो उसके विरुद्ध जालसाजी का प्रकरण क्यों नहीं बनाया। हालांकि महेन्द्र मेवाड़ा की इसमें कोई गलती नहीं है, प्रत्येक राजनेता का अंदाज आजकल यही हो चला है। मेवाड़ा ने तो अपने चेयरमैन बनने के वक्त साफ कह दिया था कि अरे दीवानों, मुझे पहचानो मैं हूं कौन, मैं हूं डॉन! अब डॉन सिरोही के वरदहस्त होंगे तो इनके आका निश्चित तौर पर बड़े लोग ही होंगे?


इंतजार किस बात का है
महेन्द्र मेवाड़ा सीधे तौर पर दोषी नजर आ रहे हैं। आदिवासी—दलित अत्याचार अधिनियम के एक प्रकरण में पुलिस ने उनके खिलाफ परिवाद दर्ज किया है। एसडीएम सिरोही ने भी स्वत: संज्ञान पर परिवाद पेश नहीं किया। आपको जानकर हैरत होगी कि अरसा बीतने को आया, लेकिन एसडीएम ने यह तस्दीक करना भी ठीक नहीं समझा कि उन्हें दी गई जानकारी सही है या गलत?

एक जागरूक व्यक्ति की शिकायत पर उन्होंने सिर्फ परिवाद पेश करके अपना कर्तव्य निभा लिया? इस पर एक बड़ा सवाल खड़ा होता हैं उन्होंने जांच में माना है कि मेवाड़ा ने तथ्य छुपाए और झूठे दस्तावेज प्रस्तुत किए। तो क्या उन्हें कुर्सी से हटाने के लिए पर्याप्त नहीं है। उनका तो वार्ड से निर्वाचन ही अवैध नजर आ रहा है। ऐसे में सरकारी चुप्पी बड़े इशारे कर रही है, जिन पर किसी का ध्यान नहीं जा रहा।

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