प्रेरणा पुंज: कहानी कीर्ति की! अनुकम्पा को ठोकर मार संघर्ष चुना, नियति ने कहर ढाया, आज सफलता ने मचा दिया शोर
यह कीर्ति राठौड़ नामक एक महिला की कहानी मात्र नहीं है। यह अभावों से जूझती, नियति की मार झेलती उन सैकड़ों—हजारों महिलाओं के लिए प्रेरणा का पुंज है। जिन्हें अनुकम्पा की लाचारी में पूरा जीवन गुजार देना होता है। कीर्ति बताती हैं कि संघर्ष—समस्याएं प्रकृति तय करती है, परन्तु हमें थककर बैठ नहीं जाना है, टूट नहीं जाना है...!
दुखांत यह नहीं होता कि रात की कटोरी को कोई जिंदगी के शहद से भर न सके और वास्तविकता के होंठ कभी उस शहद को चख न सके।
दुखांत यह होता है, जब रात की कटोरी पर से चंद्रमा की कलई उतर जाए और उस कटोरी में पड़ी हुई कल्पना कसैली हो जाए।
दुखांत यह नहीं होता कि आपकी किस्मत से आपके साजन का नाम-पता न पढ़ा जाए और आपकी उम्र की चिट्ठी सदा रुलाती रहे।
दुखांत यह होता है कि आप अपने प्रिय को अपनी उम्र की सारी चिट्ठी लिख लें और फिर आपके पास से आपके प्रिय का नाम-पता खो जाए।
दुखांत यह नहीं होता कि जिंदगी की लंबी डगर पर समाज के बंधन अपने कांटे बिखेरते रहें और आपके पैरों से सारी उम्र लहू बहता रहे।
दुखांत यह होता है कि आप लहू-लुहान पैरों से एक उस जगह पर खड़े हो जाएं, जिसके आगे कोई रास्ता आपको बुलावा न दे।
दुखांत यह नहीं होता कि आप अपने इश्क के ठिठुरते शरीर के लिए सारी उम्र गीतों के परहन सीते रहें।
दुखांत यह होता है कि इन परहनों को सीने के लिए आपके पास विचारों का धागा चूक जाए और आपकी कलम-सुई का छेद टूट जाए।
Jaipur | पंजाबी की ख्यातनाम लेखिका अमृता प्रीतम की यह पंक्तियां याद आ रही हैं। वजह है कीर्ति राठौड़! एक ऐसी महिला, जिसने जीवन में कभी कोई प्रतिस्पर्धा वाला एक्जाम नहीं दिया। नियति ने ऐसे क्रूर खेल इनके लिए रचे कि वह टूटकर अपना अस्तित्व ही खो बैठे। परन्तु इन्होंने हार नहीं मानी और बेनूर हुए जीवन के रास्ते से कांटे हटाने की सफल कोशिश की है। इनकी कहानी प्रेरणा देती है! जज्बे से भरती है! आधार तय करती है— उठ खड़े होने का...! मौत को ठेंगा दिखाने का...! आंसुओं को विदा करने का...!
Photo : Kirti Rathore with Husband Vikram Singh Shekhawat
"रिश्तों में सरकारी नौकरियों वाले लड़कों की इसलिए सर्वाधिक डिमांड है कि यदि दामाद मर गया तो भी बेटी का जीवन अनुकम्पा से गुजर जाएगा। जिस रिश्ते की शुरूआत में ही मौत जैसी सोच हो तो वह गाड़ी कैसे चलती है। आप अंदाजा लगा सकते हैं।" एक बड़े बिजनसमैन का यह कथन अक्सर रिश्तेदारियां तय होते वक्त मुझे सोचने पर मजबूर करता है।
इस कथन को खारिज भी होते देखा है, लेकिन वह मां—बाप के कारण नहीं! बल्कि जज्बे से भरी बेटियों के कारण। आप कभी जालोर में स्कूल व्याख्याता श्रीमती कविता राठौड़ से मिलें, जोधपुर में आरएएस मृदुला शेखावत से मिलें अथवा जयपुर में कीर्ति राठौड़ से! ये ऐसे नाम है,जिन्होंने अनुकम्पा नियुक्ति की बजाय संघर्ष चुनाऔर सफलताओं की नव गाथा सृजित कीं। आज कहानी कीर्ति राठौड़ की है। जिन्होंने सहायक वन संरक्षक की परीक्षा पहले ही प्रयास में पास करके अपने दिवंगत पति विक्रम सिंह शेखावत और परिवार को गौरव प्रदान किया है।
Photo : Kirti Rathore with Mother, Son, Husband and Brother
कीर्ति की दर्दभरी दास्तान हमें निराशा से भरती है, आंखों में आंसू लाने को मजबूर करती है। ऐसे खामोश अंधेरे में जाने का रास्ते तय करती है, जहां से आगे कोई मंजिल बुलावा नहीं देती। परन्तु इनकी कहानी बताती है कि रास्ते जीवन में सब जगह होते हैं। अंधेरों में भी! आपको बस चलते जाना है। पिता, पति और भाई को गंवाकर पीड़ा, दर्द, विरह, लाचारी, वेदना से गुजरी एक महिला के संघर्ष की कहानी हमें उम्मीद की एक किरण दिखाती है। यह कीर्ति के शिद्दत—समर्पण से किए प्रयास ही थे, जिसने टूट चुके लोगों के लिए सुनहरी राह का सपना संजो दिया है। जीवन में इम्तिहान इसलिए लिए जाते हैं कि आप टूट जाओ। लेकिन इसलिए भी नहीं कि टूटकर बिखर जाओ। आप टूटो, अपने आपको समेटो और नया रूप ले लो। और आपका नया रूप ऐसा हो कि आगे की दुनिया आपको बेबसी या लाचारी नहीं बल्कि गर्व की नजर से देखे।
भाग्य ने कीर्ति के साथ अन्याय करने में कसर नहीं छोड़ी। नियति ने कहर आजमाया तो कीर्ति ने जिगर आजमाया। पिता प्रमोदसिंह राठौड़ उन्हें छोड़ दुनिया से रुखसत हो गए तो ससुराल के साथ पीहर में छोटे भाई और मां का ख्याल रखतीं कीर्ति की दुनिया तो उसी वक्त लुट गई। जब एसीबी में इंस्पेक्टर विक्रम सिंह शेखावत 2019 में कैंसर से ग्रसित हो गए। मात्र चार माह में वे दुनिया से चले गए। पति की जगह तीसरे दर्जे की कांस्टेबल वाली पुलिस की नौकरी आसानी से अनुकम्पा में मिल सकती थी। परन्तु विक्रमसिंह के मित्रों ने सलाह दी कि आप अपने दम पर कुछ करिए। आपके पति ने राजस्थान भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो का नाम पूरे देश में रोशन किया। अब आप उनका नाम रोशन करें।
Photo : Kirti Rathore with Husband Vikram Singh Shekhawat
आरपीएससी की ओर से एसीएफ एवं रेंजर 2018 की भर्ती निकली तो पहले थी। परन्तु वह 2020 में एक्सटेंड हुई आवेदन पुन: मांगे गए। परिचितों ने सलाह दी कि आप और आपका भाई भानु दोनों ही योग्य हो। तैयारी करो। भाई बहिन ने फार्म भरकर तैयारी शुरू की। परीक्षा से पहले ही एक दु:खद हादसे में भानु प्रताप सिंह का निधन हो गया।
Photo : Kirti Rathore Brother late Bhanu Pratap Singh
पिता और पति के निधन के बाद नियति का यह तीसरा बड़ा वार था। पहले से टूट चुकीं कीर्ति के लिए यह स्पष्ट इशारा था कि वह अब बिखर ही जाए। परन्तु उन्होंने खुद के साथ विधवा मां और छोटे से बेटे शौर्य को संभाला। पूरे परिवार ने उन्हें सहारा दिया और आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। कीर्ति ने भी ठान लिया कि अब जीवन में इसके अलावा उनके पास कोई विकल्प नहीं है। वे कोविड में कोचिंग नहीं होने, सिलेबस के अनुसार पुस्तकों का अभाव होने के बावजूद अपनी परीक्षा में जुट गईं और दिसम्बर 2021 में आए परिणाम में उन्होंने अच्छे अंकों से रिटर्न क्लीयर कर लिया।