अवैध वसूली: माउंट आबू में ब्लैकमेलिंग का खेल, किसकी कलम बिकी है मीडिया या परिवादियों की, पत्रकारों पर आरोप लगाने वाला परिवाद हुआ वापस

पत्रकारिता का यह दुरुपयोग केवल कलम तक सीमित नहीं है। बड़े पत्रकारों ने तो बाकायदा माउंट आबू में दो-तीन गुर्गे पाल रखे है, जिनके मार्फत वसूली के लिए झूठे परिवाद करवाए जाते है और फिर पत्रकारिता का रौब जमाकर डरा धमकाकर पैसे वसूले जाते है। कलम का खौफ पत्रकार बता रहे हैं या परिवाद करने वाले ब्लैकमेलर यह भी साफ नहीं है

माउंट आबू में ब्लैकमेलिंग का खेल, किसकी कलम बिकी है मीडिया या परिवादियों की, पत्रकारों पर आरोप लगाने वाला परिवाद हुआ वापस

माउंट आबू | गुजरे चंद सालों में गुजरात और राजस्थान की सरहद पर आबाद प्रदेश के एकमात्र पर्वतीय पर्यटन स्थल माउंट आबू में जिस तरह से कंकरीट का जंगल पनप रहा है, उससे हिल स्टेशन पर कमाई के नए रास्ते खुल रहे हैं। कमाई केवल टैंकरों या लग्जरी वाहनों में बजरी और सीमेंट की तस्करी में ही नहीं, बल्कि आपसी मुकाबला भूल हाथ मिलाने में भी है। यहां अब कलम की आड़ में अवैध वसूली का खेल भी चलने लगा है। हिल स्टेशन के इको सेंसेटिव जोन में शामिल होने के बाद यहां कोई भी नए निर्माण से पहले संबंधित एजेन्सियों की अनुमति आवश्यक है। बावजूद इसके कलम का खौफ बताकर कुछ लोग अपनी जेबें भरने से नहीं चूक रहे हैं।

भास्कर अग्रवाल नामक व्यक्ति ने इस परिवाद को वापस ले लिया है। उसका कहना है कि उसके नाम से किसी तरह की शिकायत नहीं हुई। ऐसे में पत्रकार कौम की बदनामी ही हुई है। यह पत्रकारों की आपसी साजिश है या और कुछ पता नहीं, लेकिन यह साफ है कि माउंट आबू की फिजाओं में सब कुछ ठीक नहीं है। कलम का खौफ पत्रकार बता रहे हैं या परिवाद करने वाले ब्लैकमेलर यह भी साफ नहीं हो पा रहा है। पहले आरोप पत्रकारों पर लगाया गया और परिवाद वापस होने से यह साफ है कि परिवादी भी पत्रकारों पर अपना खौफ कायम करना चाहते हैं। यही नहीं पत्रकारों ने इस मामले की गंभीरता से जांच करवाने की मांग भी की है। ताकि ब्लैकमेलिंग करने वाले परिवादों के पीछे खड़े लोगों की भूमिका सामने आ सके।

राजस्थान के दो समाचार पत्रों का मुकाबला जगजाहिर है, लेकिन हिल स्टेशन पर इन समाचार पत्रों के संवाददाता पर अवैध वसूली का आरोप लगा है। एक पीड़ित ने इसकी शिकायत परिवाद के रूप में न केवल पुलिस थाने तक दी है, बल्कि दोनों समाचार पत्रों के संपादकों, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, डीजीपी एमएल लाठर, जिला पुलिस अधीक्षक तक भी पहुंचाई। पहले परिवाद करके इसकी शिकायत की गई। अब बाद में मामले की जांच हुई तो भास्कर अग्रवाल नाम के व्यक्ति ने इस परिवाद के अपना नहीं होने की बात कहते हुए इसे वापस भी ले लिया है।  यह आरोप परिवाद वापस होने के साथ ही सवालों के घेरे में आया है।

परिवाद में कहा गया कि सिरोही जिले में एक समाचार पत्र का ब्यूरो चीफ काफी समय से जिले के हिल स्टेशन पर इको सेसेंटिव जोन की पाबंदियों का फायदा उठाकर लोगों को ब्लैकमेल कर पैसा वसूल कर रहा है। इस कार्य में एक अन्य समाचार पत्र में माउंट आबू के पत्रकार के साथ हाथ मिलाया जा चुका है। जबकि, दोनों समाचार पत्रों में बरसों से प्रतिस्पर्धा है।

आरोप लगा है कि माउंट आबू क्षेत्र में किसी व्यक्ति द्वारा मकान रिपेयरिंग की अनुमति लेकर कार्य किया जाता है तो उक्त पत्रकार कैमरा लेकर मौके पर पहुंच जाते है और मकान की फोटो लेकर कहत है कि ये तुम्हारा मकान बिना अनुमति के बना हुआ है, तुम मेरे को पैसे दो नहीं तो मैं तुम्हारे खिलाफ न्यूज प्रकाशित कर दूंगा। जिससे तुम्हारा मकान प्रशासन की ओर से तोड़ दिया जायेगा।

चूंकि माउंट आबू इको सेंसेटिव जोन है, इसलिए निर्माण कार्य रोक होने के कारण यहां की आम जनता को मकान टूटने का भय लगा रहता है और इस जनता के भय का फायदा उठाकर कलम की आड़ में मांउट आबू की भोली भाली जनता को पत्रकारिता का रौब दिखाकर अवैध वसूली की जाती है। मांउट आबू में होटलों का कारोबार है। अवैध वसूली के चक्कर में पहले भी कई न्यूज़ चैनलों एवं अखबार समूहों द्वारा ब्लैकमेलिंग व अवैध वसूली के आरोप में पत्रकार ब्लैक लिस्ट किए हुए है। 

पत्रकारिता का यह दुरुपयोग केवल कलम तक सीमित नहीं है। बड़े पत्रकारों ने तो बाकायदा माउंट आबू में दो-तीन गुर्गे पाल रखे है, जिनके मार्फत वसूली के लिए झूठे परिवाद करवाए जाते है और फिर पत्रकारिता का रौब जमाकर डरा धमकाकर पैसे वसूले जाते है। माउंट आबू की आम जनता को मकान तोड़ने की धमकियां दी जाती है क्योंकि माउंट आबू में इको सेंसेटिव जोन होने के कारण अवैध निर्माण पर प्रतिबंध है। माउंट थानाधिकारी किशोर सिंह भाटी का कहना है कि दो समाचार पत्रों के संवाददाताओं के खिलाफ अवैध वसूली की शिकायत मिली है। इसकी जांच करवाई जा रही है।

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